सत्ता पाकर पागल हो गयी.
व्हिस्की भी गंगाजल हो गयी.
मंत्री जी की कृपा हुई तो,
कुटिया भी विंध्याचल हो गयी.
दिन भर उसके साथ रहा मैं,
बस्ती में क्यों हलचल हो गयी.
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छोटी सी उम्र में ही लेखन के प्रति दीवानगी के कारण घर तक छोड़ देने और बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवन यापन करने के बावज़ूद साहित्य की सच्ची सेवा करने, कभी अपने हौसले से न डिगने, स्वभाव से बेहद विनम्र लेकिन सच और स्वाभिमान के लिये अपना सब कुछ झौंक देने और कभी भी हार न मानने वाले पवन तूफान से साहित्य को बहुत उम्मीदें हैं. -संजीव गौतम
वाह.......वाह..........वाह...........वाह.........!!!!
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