मैं न कभी होता दुखी, पर मन का सब दोष.
ये न कभी भी कर सका, थोड़े में संतोष.
Saturday, April 25, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)
छोटी सी उम्र में ही लेखन के प्रति दीवानगी के कारण घर तक छोड़ देने और बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवन यापन करने के बावज़ूद साहित्य की सच्ची सेवा करने, कभी अपने हौसले से न डिगने, स्वभाव से बेहद विनम्र लेकिन सच और स्वाभिमान के लिये अपना सब कुछ झौंक देने और कभी भी हार न मानने वाले पवन तूफान से साहित्य को बहुत उम्मीदें हैं. -संजीव गौतम